अर्जुन ने द्रौपदी को कैसे जीता या द्रौपदी से कैसे विवाह किया? Arjun ne draupadi ko kaise jeeta ya draupadi se vivah kiya?
कुछ दिन बाद चक्का नगरी से पांडवो ने पांचाल देश जाने के लिए प्रस्थान किया। उस समय वहां द्रौपदी स्वयम्वर की तैयारियां हो रही थी। पांडव लोग ब्राह्मण वेश धारण किए ही पंचाल देश की राजधानी में एक कुम्हार के घर में ठहर गए। स्वयम्वर के लिए एक सुंदर मंडप तैयार किया गया था। मंडप के बीच एक धनुष रखा था। धनुष के ऊपर काफी उचाई पर एक मछली टंगी हुई थी। नीचे बहुत बड़े कराहे में तेल भरा था। राजा द्रुपद की घोषणा थी जो कोई नीचे कराहे कि तेल में बनी मछली की छवि को देखकर वान से मछली को गिरा देगा। उसी के साथ द्रौपदी की होगी। उस सभा में सौ भाई कौरव, अंग नरेश कर्ण, शिशुपाल, जरशान्ध, श्री कृष्ण आदि सभी वीर पहुँचे हुये थे।
पांचों भाई पांडव भी ब्राह्मण मंडली में मिलकर एक साथ बैठे तमाशा देख रहे थे। सभी योद्धा बारी-बारी से मछली विंध्ने में असफल होकर अपनी जगह आ बैठे थे। तभी अर्जुन उठकर मंडप के बीच आए। द्रुपद के पुत्र दृष्टधुमन से आज्ञा ले धनुष पर तीर चढ़ाया और भगवान नारायण का ध्यान कर नीचे तेल के कराहे में मछली को देखकर वान छोर दिया। मछली गिरकर नीचे आ गई। द्रौपदी ने जयमाला अर्जुन के गले में डाल दी।