जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण कैसे किया? जयद्रथ को द्रौपदी हरण का क्या परिणाम मिला? Jayadrath ne draupadi ka haran kaise kiya? Jayadrath ko draupadi haran ka kya parinaam mila?
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जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण कैसे किया? जयद्रथ को द्रौपदी हरण का क्या परिणाम मिला? |
एक दिन पांचों पांडव जंगल में घूमने गए थे। आश्रम में द्रौपदी अकेली थी। वह आश्रम से बाहर प्राकृतिक दृश्य को देख रही थी। उसी समय सिंधु देश का राजा जयद्रथ अपने सैनिक सहित जा रहा था। द्रौपदी पर नजर पड़ते ही वह उस पर मोहित हो सामने पहुंच गया। बोला तुम पांडवों को त्याग मेरी पत्नी बनो जाओ। ऐसो आराम के साथ सम्पूर्ण राज्य की रानी बनी रहोगी।
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जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण कैसे किया? जयद्रथ को द्रौपदी हरण का क्या परिणाम मिला? |
द्रौपदी गुस्से में बोली - अरे मूर्ख तुम्हें ऐसा कहते हुए शर्म नहीं आती। जल्दी से भाग जा वरना पांडवों को मालूम होते ही तुम्हें यमलोक पहुंचा देंगे।
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जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण कैसे किया? जयद्रथ को द्रौपदी हरण का क्या परिणाम मिला? |
जयद्रथ बोला - मैं पांडवों से भय नहीं खाता। इतना कह द्रौपदी को बल पूर्वक रथ पर बिठा भाग चला। तभी एक ऋषि देखकर चिलाने लगे। आवाज सुनकर पांडव सभी भी भागे आये। द्रौपदी हरण सुनकर तुरंत रथ का पीछा कर जा पकरें। जयद्रथ डर से द्रौपदी को उतार भाग रहा था। जिसे भीमसेन में पकड़ लिया। उसे मारना ही चाहते थे कि युधिष्ठिर बोलें - इसे मारना मत। यब बहन दुःशला का सुहाग है। भीमसेन ने जयद्रथ का सिर मुंडवाकर पांसह चोटिला छोड़ दी। जयद्रथ शर्म से सिर झुकाए वहां से चला गया।
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जयद्रथ ने द्रौपदी का हरण कैसे किया? जयद्रथ को द्रौपदी हरण का क्या परिणाम मिला? |