महाभारत युद्ध में कर्ण की मृत्यु कैसे हुई? Mahabharat yudh mein karn ki mrityu kaise huye?
सत्रहवें दिन युद्ध में महावीर कर्ण ने पांडवो की सेना को नष्ट करना शुरु कर दिया। भीम ने दुर्योधन के छह भाइयों को मार डाला। दुर्योधन को भीम के पास से भागना पड़ा। अर्जुन की नजर कर्ण पुत्र वृषेन पर पड़ी। क्रोधित हो अर्जुन ने धनुष पर वान चढ़ाकर। अश्वत्थामा तथा दुर्योधन को सुनाकर बोले तुम लोगों ने मिलकर अकेला असहाय, रथहीन, शस्त्रहीन मेरे पुत्र अभिमन्यु को धोखे से मारा था। परंतु मैं सबके सामने कर्ण पुत्र का वध कर रहा हूं। जिससे शक्ति हो आकर बचा ले। इतना कह अर्जुन ने वृषेन को मार डाला।
उसके बाद कर्ण और अर्जुन का रथ युद्ध में आमने सामने हो गया। आकाश से देवता, मुनि, राक्षस, गंधर्व, यक्ष आदि भी कर्ण अर्जुन युद्ध देखने लगे। दोनों वीरो में घमासान युद्ध शुरू हो गया। अर्जुन ने कर्ण के रथ के घोड़े को मार डाला। रथ का पहिया धरती में धंस गया। कर्ण अत्यधिक घायल भी हो गया था। इस समय वह परशुराम जी द्वारा दिया गया घोर अस्त्र भी भूल गया। कर्ण रथ से उतरकर अपने रथ का पहिया पृथ्वी से निकालने का प्रयत्न करने लगा। और अर्जुन से बोला - अर्जुन जब तक मैं इस रथ के पहिये को ना निकाल लूं। तब तक तुम मुझ पर प्रहार मत करना। क्योंकि तुम धर्म पूर्वक युद्ब करने वाले हो।
श्री कृष्ण ने कर्ण से कहा - है कर्ण इस समय प्राण संकट में परने पर तुम्हें धर्म याद आ रहा है। जब तुम राजस्वला में द्रौपदी को एक वस्त्रा में भरी सभा में तमाशा देखते रहे। भीम को जान से मारने के लिए जहर दिया, निहत्थे अभिमन्यु को तुम सब ने मिलकर मार डाला था। उस समय तुम्हारा धर्म कहां था। अब तुम्हारी मृत्यु निश्चित है। फिर श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने कर्ण पर दिव्य शास्त्रो का प्रयोग करने लगा। कर्ण ने भी उसके वानो को काट अर्जुन को मूर्छित कर दिया और पुनः पहिये निकालने लगा। अर्जुन सचेत होते ही आंजलिक महामंत्र से आमंत्रित कर कर्ण के ऊपर छोड़ दिया। उस वान के लगते ही कर्ण धरासाई होकर पृथ्वी पर गिर गया। कौरव में भाग दर मची गई। सूर्यास्त होते हैं युद्ध बंद हो गए।