महराज विराट को पांडव और द्रौपदी के अज्ञातवास का कैसे पता चला? Mahraj virat ko pandav aur draupadi ke agyatavas ka kaise pata chala?
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महराज विराट को पांडव और द्रौपदी के अज्ञातवास का कैसे पता चला? |
किचक की मृत्यु सुनकर त्रिगत सम्राट सुशर्मा ने मत्स्य राज्य पर चढ़ाई कर दी। सभी लोग युद्ध मैदान से वापस आ गए थे। लेकिन महराज विराट के पुत्र उत्तर अभी तक नहिनाये थे। इधर राज्यसभा में महाराज विराट दुःखित थे। की विशाल सेना के सामने मेरे पुत्र की क्या गति हुई होगी। एक हिजड़े को सारथी बनाकर गया है।
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महराज विराट को पांडव और द्रौपदी के अज्ञातवास का कैसे पता चला? |
यह सुन महाराज को ढांढस बांधते हुए कंक ( युधिष्टिर ) ने कहा - आप राजकुमार की चिंता न करें वे अवश्य विजयी होकर लौटेंगे। जिस रथ का सारथी वृहनल्ला होती है उसे कोई हरा नहीं सकता। तभी दूत ने आकर महाराज से कहा कि राजकुमार कौरवों की सेना पर विजय प्राप्त कर आ रहे हैं।
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कंक ने फिर से कहा - महाराज मैं अच्छी तरह जानता हूं कि वृहनल्ला के रहते कोई जीत नही सकता है। बाहुबली में भी वृहनल्ला के समान कोई योद्धा इस पृथ्वी पर ना होगा। यह सुन महाराज को गुस्सा आया। वोले नीच ब्राह्मण एक नपुंसक से मेरे पुत्र की तुलना करता है। इतना कह जो पासा से खेल रहे थे उसी पासा से कंक के चेहरे पर दे मारा। युधिष्ठिर के नाक से रक्त की धारा फुट पड़ी। जिसे देखते ही द्रौपदी ने कटोरे उठा उसी में रक्त बह जाने दी। तभी द्वारपाल वृहनल्ला के साथ राजकुमार के आने की सूचना दी।
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महराज विराट को पांडव और द्रौपदी के अज्ञातवास का कैसे पता चला? |
युधिष्ठिर द्वारपाल से धीरे से कहा सिर्फ राजकुमार को ही अंदर आने देना। वृहनल्ला को उधर ही वापस कर देना वरना अनर्थ हो जाएगा। राजकुमार उत्तर ने आकर महाराज को प्रणाम किया फिर कंक को प्रणाम करने के लिए ज्योही ही घूमे उनके चेहरे से खून देख महाराज से पूछा पिताजी इन धर्मात्मा को किसने चोट पहुंचाई है।
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महराज विराट को पांडव और द्रौपदी के अज्ञातवास का कैसे पता चला? |
विराट में कहा - तेरी विजय की बात सुन यह बार-बार नपुंसक वृहनल्ला की बड़ाई कर रहा था कि उसी के रहते तुमने विजय प्राप्त की है। इसलिए मैंने ही इसे गुस्से में घात पहुंचाया है।
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यह सुन उत्तर ने कहा पिता जी आपने बहुत अनर्थ कर डाला है। आप इनसे माफी मांग छमा याचना करे वरना अपने वंश का सर्वनाश हो जाएगा। इनकी कहीं बातें ही सही है। इस युद्ध को मै नहीं वृहनल्ला ने जीता है। जिन्हें आपने आघात किया वे स्वम इंद्रप्रस्थ के सम्राट महाराज युधिष्ठिर है।वृहनल्ला जो मेरे साथ युद्ध में गई थी। वही पांडवों के गांधारी वीर अर्जुन है। उन्होने ही मुझे बताया है। और अन्य पांडव भी आपकी ही सेवा में तत्पर है। क्योंकि वे अज्ञातवास वेष बदलकर बिता रहे थे। और कल ही इनका समय पूर्ण हो चुका है।
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इतना सुनते ही महाराज विराट ने युधिष्ठिर के पैरों के पास बैठ क्षमा मांगी। युधिष्ठिर ने भी अज्ञातवास के दौरान आसरा देना का आभार प्रकट किया।