पांडव और द्रौपदी ने अपने प्राण का त्याग कैसे किया? पांडव और द्रौपदी की मृत्यु कैसे हुई? Pandav aur draupadi ne apne pran ka tyag kaise kiya?
धर्मराज युधिष्टिर को श्री कृष्ण, बलदेव सहित सभी यदुवंसियों का नाश सुनकर मन विरक्त हो गया। सभी भाइयों से विचार विमर्श कर युयुत्सु को बुला राज्य की देख रेख का भार सौप कर हस्तिनापुर के सिहांशन पर अभिमन्यु पुत्र परीक्षित को बिठा राज्यअभिषेक कर दिए।
फिर द्रौपदी सहित सभी भाई राजसी वस्त्र वतकल वस्त्र धारण कर वन को चल दिए। नगरवासी कुछ दूर जाने के बाद वापस आ गए। सबसे आगे युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव और सबसे पीछे द्रौपदी चल रही थी।
हिमालय की चढ़ाई में सर्वप्रथम द्रौपदी गिर पड़ी और प्राण निकल गए। एक-एक कर भीमसेन, सहदेव, नकुल एवं अर्जुन भी चलते-चलते गिर पड़े और प्राण त्याग दिए। अंत में सिर्फ युधिष्ठिर ही एकमात्र अकेले बढ़ते गए। उनके पीछे - पीछे में एक कुत्ता भी चल रहा था।
उसी समय स्वयं इंद्र रथ पर सवार हो युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने के लिए उनके पास पहुंचे। और पर बैठने को कहा। युधिष्टिर द्रौपदी सहित भाइयों के वियोग के कारण बैठने को तैयार नहीं हुए। तब इन्द्र देव ने कहा युधिष्टिर तुम चिंता मत करो।वे सभी स्वर्ग पहुंच चुके है। अतः तुम कुत्ते को छोड़ चले आओ।
युधिष्टिर ने कहा यह मेरा पूरा रास्ता साथ देते आया है मै इसे नहीं छोड़ सकता। कुत्ता वास्तव में धर्मराज थे। वे असली रूप में प्रकट हो युधिष्ठिर को आआशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए। युधिष्टिर रथ पर सवार हो स्वर्ग चले गए।